जब सीता माता को रावण अपहरण करके लंका लेकर गया| तब रावण चाहता तो उसी समय माता सीता से विवाह एवं जोर-जबर्दस्ती कर सकता था| लेकिन उसने सीता माता को बिना उउनकी मर्जी के उन्हें छू भी नहीं सकता था | ऐसा क्यों ? क्या वह श्री राम जी से डरता था? या उसे अपने आप पर भरोसा नहीं था ?या फिर सीता माता से किसी तरीके से डर लग रहा था | चलिए इसके बारे में जानते हो रावण सीता माता को छूने की क्यों नहीं कर पाया ?
पुराणों के अनुसार इसके पीछे दो घटनाएं मौजूद है पहली घटना हम आपको सुनाते हैं
इस घटना को उजागर रामायण की मुख्य राक्षस नी त्रिजटा करती है जब सीता माता (Sita Mata)को प्रताड़ित करने के लिए रावण बार-बार सीता माता के पास आता है| तब सीता माता एक घास की दुब को लक्ष्मणरेखा बनाकर रावण के सामने रख देती है | जिससे अगर वह सीता माता के पास आएगा तब वह जलकर भस्म हो जाएगा
| लेकिन इस चीज से बचने के लिए भी और सीता माता को सांत्वना देने के लिए भी रावण की मुख्य राछसि (त्रिजटा एक समझदार और ज्ञानी राछसि थी वह अपना भविष्य देख सकती थी | त्रिजटा ने एक रहस्य सीता माता को बताया रावण ने स्वर्ग में रह रहे| धन कुबेर के पुत्र कुबेर की अप्सरा को अंतर्वासना की दृष्टि से देखा था|
और रावण ने अंतर्वासना की दृष्टि से नल कुबेर की अप्सरा रंभा को जबरन पकड़ लिया तथा अश्लील वक्तव्य करने लगा यह सब देख रंभा को गुस्सा आ गया और रंभा ने रावण को श्राप दिया| कि जब भी वह किसी पराई स्त्री को उसकी बिना मर्जी के उस स्त्री को अंतर्वासना एवं गलत भावना से छुयेगा | तब रावण उसी समय भस्म हो जाएगा यह बात रावण को पता थी और इसी वजह से रावण सीता को बिना उनकी मर्जी के नहीं छूना चाहता था |
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रावण नलकुबेर और अप्सरा के नाजायज संबंध से खुश नहीं था | अप्सरा रंभा बहुत ही खूबसूरत थी | इसलिए रावण उनके रंग पर मोहित होकर उनके साथ अंतर्वासना का मन बना बैठा था | इसी कहानी को त्रिजटा माता सीता को समझाती है जिससे माता सीता निश्चित हो जाती है |
सिर्फ सीता माता ही नहीं थी जिन पर रावण ने अंतर्वासना के लिए गलत दृष्टि का उपयोग किया था| इससे पहले भी कई सारी घटनाएं ऐसी हैं जिनमें रावण अपने अंतर्वासना ओं के लिए महिलाओं के साथ गलत बर्ताव करता रहा है | जिसमें से यह घटना भीसत्य है |
रावण हिमालय पर भगवान शिव से वरदान और शक्तिशाली खडग पाकर बहुत ही अभिमानी हो चुका था और अहंकार से भर गया था| पृथ्वी पर घूमते घूमते वह हिमालय के घने जंगलों में पहुंचा और वहां पर तपस्या करती हुई एक रूपवती कन्या को देखकर उन पर मोहित हो गया| वह कन्या गहरी तपस्या में लीन थी और कन्या के रंग रूप को देख राक्षस उस कन्या का परिचय जानना चाह रहा था|
कामवासना से भरे अचंभित करने वाले प्रश्नों को सुनकर वह कन्या रावण का मन जान चुकी थी | उस कन्या ने अपना परिचय दिया | उस कन्या ने कहा हे रावण मेरा नाम वेदवती है और मैं परम तेजस्वी महा ऋषि कुशध्वज की पुत्री हूं|
मेरे इस युवावस्था के यौवन को देखकर देव ,यक्ष , नाग , राक्षस एवं काफी बड़े-बड़े महारथी मुझसे विवाह करने की इच्छा जता चुके हैं | लेकिन मेरे पिता की इच्छा के अनुसार मैं भगवान विष्णु को अपना पति मान चुकी हूं | और उन्हें अपना पति बनाना चाहती हूं| तो कृपया करके आप अपनी रानी बनाने का तुछ विचार छोड़ दे|
मुझे हथियाने के लिए गंधर्व नामक राक्षस ने मेरे पिता को मार दिया और पिता की मौत के वियोग में मेरी माता ने भी मेरे पिता की चिता की अग्नि में कूदकर जान दे दी| जिससे मैं अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए तपस्या कर रही हूं| जिससे मैं भगवान विष्णु को अपना पति के रूप में आसन पा सकूं|
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इन सब बातों को सुन अहंकार से भरे राक्षस रावण ने उनसे कहा कि विष्णु को पा कर भी क्या करेगी मैं विष्णु से भी जीत कर आया हूं आप मुझसे विवाह कर लीजिए जब स्त्री ने रावण के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तब रावण ने वेदवती के बालों को खींचकर जमीन पर घसीटना शुरू कर दिया| अपने साथ यह सब बर्ताव देखकर स्त्री ने रावण को श्राप दिया कि वह अगले जन्म में एक स्त्री तेरी मृत्यु का कारण बनेगी इसके बाद वेदवती गहरी खाई में कूद गई और अपनी जान दे दी|
रावण समझ चुका था कि उसे स्त्री द्वारा ही मरना है और उसे इस बात का स्मरण भी था | लेकिन अपनी मोह के पीछे वह इन सब को भूल गया और सीता माता को छोड़ने का विचार त्याग दिया|
मुझे उम्मीद है कि आप के सभी प्रश्नों का जवाब आपको मिल चुका होगा | अगर आप हमारे इस जवाब से संतुष्ट है तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए और इसे अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों के साथ व्हाट्सएप पर वह फेसबुक पर भी शेयर करें ताकि और लोग भी इस बारे में जान सकें|
Ravan ki mrityu Ke kya karan the - Kya Ravan Ram Ji Ki wajah se Mara?
Ravan ko kon se Shraap Mile The? Ravan ki mrityu kyon hui?
पुराणों के अनुसार इसके पीछे दो घटनाएं मौजूद है पहली घटना हम आपको सुनाते हैं
पहली घटना रंभा द्वारा रावण को श्राप- Ravan ki mrityu ka karan kya hai?
इस घटना को उजागर रामायण की मुख्य राक्षस नी त्रिजटा करती है जब सीता माता (Sita Mata)को प्रताड़ित करने के लिए रावण बार-बार सीता माता के पास आता है| तब सीता माता एक घास की दुब को लक्ष्मणरेखा बनाकर रावण के सामने रख देती है | जिससे अगर वह सीता माता के पास आएगा तब वह जलकर भस्म हो जाएगा
| लेकिन इस चीज से बचने के लिए भी और सीता माता को सांत्वना देने के लिए भी रावण की मुख्य राछसि (त्रिजटा एक समझदार और ज्ञानी राछसि थी वह अपना भविष्य देख सकती थी | त्रिजटा ने एक रहस्य सीता माता को बताया रावण ने स्वर्ग में रह रहे| धन कुबेर के पुत्र कुबेर की अप्सरा को अंतर्वासना की दृष्टि से देखा था|
और रावण ने अंतर्वासना की दृष्टि से नल कुबेर की अप्सरा रंभा को जबरन पकड़ लिया तथा अश्लील वक्तव्य करने लगा यह सब देख रंभा को गुस्सा आ गया और रंभा ने रावण को श्राप दिया| कि जब भी वह किसी पराई स्त्री को उसकी बिना मर्जी के उस स्त्री को अंतर्वासना एवं गलत भावना से छुयेगा | तब रावण उसी समय भस्म हो जाएगा यह बात रावण को पता थी और इसी वजह से रावण सीता को बिना उनकी मर्जी के नहीं छूना चाहता था |
यह भी पढ़े क्या सीता माता रावण की बेटी थी - जानिए पूरा सच
रावण नलकुबेर और अप्सरा के नाजायज संबंध से खुश नहीं था | अप्सरा रंभा बहुत ही खूबसूरत थी | इसलिए रावण उनके रंग पर मोहित होकर उनके साथ अंतर्वासना का मन बना बैठा था | इसी कहानी को त्रिजटा माता सीता को समझाती है जिससे माता सीता निश्चित हो जाती है |
दूसरी घटना वेदवती द्वारा श्राप (Vedvati Shraap to Ravan)
सिर्फ सीता माता ही नहीं थी जिन पर रावण ने अंतर्वासना के लिए गलत दृष्टि का उपयोग किया था| इससे पहले भी कई सारी घटनाएं ऐसी हैं जिनमें रावण अपने अंतर्वासना ओं के लिए महिलाओं के साथ गलत बर्ताव करता रहा है | जिसमें से यह घटना भीसत्य है |
रावण हिमालय पर भगवान शिव से वरदान और शक्तिशाली खडग पाकर बहुत ही अभिमानी हो चुका था और अहंकार से भर गया था| पृथ्वी पर घूमते घूमते वह हिमालय के घने जंगलों में पहुंचा और वहां पर तपस्या करती हुई एक रूपवती कन्या को देखकर उन पर मोहित हो गया| वह कन्या गहरी तपस्या में लीन थी और कन्या के रंग रूप को देख राक्षस उस कन्या का परिचय जानना चाह रहा था|
कामवासना से भरे अचंभित करने वाले प्रश्नों को सुनकर वह कन्या रावण का मन जान चुकी थी | उस कन्या ने अपना परिचय दिया | उस कन्या ने कहा हे रावण मेरा नाम वेदवती है और मैं परम तेजस्वी महा ऋषि कुशध्वज की पुत्री हूं|
मेरे इस युवावस्था के यौवन को देखकर देव ,यक्ष , नाग , राक्षस एवं काफी बड़े-बड़े महारथी मुझसे विवाह करने की इच्छा जता चुके हैं | लेकिन मेरे पिता की इच्छा के अनुसार मैं भगवान विष्णु को अपना पति मान चुकी हूं | और उन्हें अपना पति बनाना चाहती हूं| तो कृपया करके आप अपनी रानी बनाने का तुछ विचार छोड़ दे|
मुझे हथियाने के लिए गंधर्व नामक राक्षस ने मेरे पिता को मार दिया और पिता की मौत के वियोग में मेरी माता ने भी मेरे पिता की चिता की अग्नि में कूदकर जान दे दी| जिससे मैं अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए तपस्या कर रही हूं| जिससे मैं भगवान विष्णु को अपना पति के रूप में आसन पा सकूं|
यह भी पढ़े भारत में इन 8 स्थानों पर होती है रावण की पूजा
इन सब बातों को सुन अहंकार से भरे राक्षस रावण ने उनसे कहा कि विष्णु को पा कर भी क्या करेगी मैं विष्णु से भी जीत कर आया हूं आप मुझसे विवाह कर लीजिए जब स्त्री ने रावण के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तब रावण ने वेदवती के बालों को खींचकर जमीन पर घसीटना शुरू कर दिया| अपने साथ यह सब बर्ताव देखकर स्त्री ने रावण को श्राप दिया कि वह अगले जन्म में एक स्त्री तेरी मृत्यु का कारण बनेगी इसके बाद वेदवती गहरी खाई में कूद गई और अपनी जान दे दी|
रावण समझ चुका था कि उसे स्त्री द्वारा ही मरना है और उसे इस बात का स्मरण भी था | लेकिन अपनी मोह के पीछे वह इन सब को भूल गया और सीता माता को छोड़ने का विचार त्याग दिया|
मुझे उम्मीद है कि आप के सभी प्रश्नों का जवाब आपको मिल चुका होगा | अगर आप हमारे इस जवाब से संतुष्ट है तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए और इसे अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों के साथ व्हाट्सएप पर वह फेसबुक पर भी शेयर करें ताकि और लोग भी इस बारे में जान सकें|