लाला बहादुर शास्त्री जी की जीवनी हिंदी
- नाम:- लाल बहादुर शास्त्री
- पिता का नाम :-शारदा प्रसाद श्रीवास्तव
- माता का नाम:-रामदुलारी देवी
- पत्नी का नाम :-कुमारी ललिता देवी
- जन्म :- 2 अक्टूबर 1904
- स्थान :- मुगलसराय उत्तरप्रदेश
- मृत्यु :- 10 जनवरी 1966 ताशकंद
- उपलब्धि :- भारत के दूसरे प्रधानमंत्री , पाकिस्तान और चीन युद्ध
शस्त्री जी की प्रारंभिक
उपलब्धिया :- लाल बहादुर शास्त्री जी 1964
में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे |इससे पहले वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में
मुख्य भूमिका निभा चुके थे| उत्तर प्रदेश के
तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के सदस्य सचिव मंत्रिमंडल में पुलिस और
परिवहन मंत्री तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री की भूमिका निभा
चुके थे|
शारीरिक कद में छोटे होने
के बावजूद वह महान इच्छाशक्ति व उच्च विचार के व्यक्ति थे| पाकिस्तान के साथ हुए 1965 के युद्ध में लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपना
सफलतापूर्वक नेतृत्व देकर पूरे भारत को अपने साथ रखा और भारत को साथ रखने के लिए “जय जवान जय किसान” का नारा उन्होंने भारत को दिया|
आजादी से पहले उन्होंने आजादी की लड़ाई में काफी
अहम भूमिका निभाई थी जिसके कारण कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा शुरू से शास्त्री
जी अपने नैतिक व् शांत स्वभाव के लिए जाने जाते थे|
लाल बहादुर शास्त्री का
प्रारंभिक जीवन:- लाल बहादुर शास्त्री का
जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था| इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद और इनकी माता का नाम मां रामदुलारी देवी था |लाल बहादुर शास्त्री जी का पूरा नाम लाल बहादुर
श्रीवास्तव था | लेकिन इन्होंने अपने मूल
नाम के पीछे से उपनाम हटाकर केवल लाल बहादुर नाम रख लिया| उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह अपनी जाति
किसी को नहीं बताना चाहते थे और सभी लोगों के लिए एक समान रहना चाहते थे|
लाल बहादुर शास्त्री जी
के पिता एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे | बाद में उनकी नौकरी आयकर विभाग में एक क्लर्क के पद पर लग
गई थी| शारदा प्रसाद शुरू से ही
गरीब थे गरीब होने के बावजूद भी वे अपनी ईमानदारी और शराफत के लिए पूरे मुगलसराय
में जाने जाते थे| लाल बहादुर शास्त्री जब 1
वर्ष के थे तब उनके पिता शारदा प्रसाद का
देहांत हो गया था| इसके बाद वह अकेले हो गए
लाल बहादुर शास्त्री की मां अपने तीनों बच्चों को लेकर अपने पैतृक घर चली गई और
वहीं पर लाल बहादुर शास्त्री जी का पालन पोषण हुआ था|
शास्त्री जी के जीवन मैं
मोड़ :-जब लाल बहादुर शास्त्री 6
वर्ष के थे तब उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी
जिसने उनका सारा जीवन ही बदल दिया| वह अपने दोस्तों के साथ
में एक बाग में आम तोड़ने के लिए गए थे| उनके दोस्त बाग में घुस गए लेकिन लाल बहादुर शास्त्री जी बाग
के बाहर ही खड़े रहे लेकिन इतने में बगीचे का मालिक दौड़ दौड़ कर आ गया और लाल
बहादुर शास्त्री जी को पकड़ लिया |
उनको पकड़ने के बाद उसने
उन्हें काफी डांटा लेकिन जब लाल बहादुर शास्त्री जी ने उनसे प्रार्थना की , कि वह एक अनाथ हैं उन्हें छोड़ दें तब माली ने
दया खाकर उन्हें छोड़ दिया| और उनसे कहा कि “मैंतुम्हें इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि तुम
अनाथ हो और तुम अनाथ हो तो तुम्हें अच्छा आचरण व व्यवहार सीखना चाहिए”
इस घटना ने शास्त्री जी
के दिमाग पर ऐसी छाप छोड़ी कि उन्होंने एक उच्च व्यवहार और सादगी भरा जीवन जीने के
लिए प्रेरित किया | लाल बहादुर जी अपने दादा के
घर पर 10 साल की उम्र तक रुके |तब तक उन्होंने कक्षा 6 की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी| उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह बाद में
वाराणसी चले गए|
लाल बहादुर शास्त्री जी
का राजनितिक जीवन :-लाल बहादुर शास्त्री जी का राजनीतिक जीवन जब
आजादी से पहले 1921 में महात्मा गांधी ने
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ “असहयोग आंदोलन” की शुरुआत की तब वे सिर्फ साल के थे 17
साल के थे | जब महात्मा गांधी ने देश के युवाओं को असहयोग आंदोलन में
आमंत्रित किया तथा उनसे प्रार्थना करी कि वह सभी सरकारी दफ्तर छोड़कर सड़कों पर
आएं और देश के लिए आंदोलन करें|
तब शास्त्री जी अपना स्कूल छोड़कर गांधी जी के
साथ आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए निकल पड़े थे| हालांकि उनकी माताजी और रिश्तेदारों ने उन्हें ऐसा ना करने
का सुझाव दिया |पर वह अपने फैसले पर अडिग
रहे| लाल बहादुर शास्त्री जी
को असहयोग आंदोलन के दौरान कई बार गिरफ्तार भी किया गया था|
आंदोलन के दौरान कई बार
गिरफ्तार होने के बावजूद उन्हें छोटी उम्र का होने के कारण छोड़ दिया गया | जेल से छूटने के बाद लाल बहादुर जी ने काशी
विद्यापीठ में 4 साल तक दर्शनशास्त्र की
पढ़ाई की और वर्ष 1926 में लाल बहादुर ने शास्त्री
की उपाधि प्राप्त कर ली|
काशी विद्यापीठ छोड़ने के
पश्चात वह The Servant of the peoples society से जुड़ गए| जिसकी शुरुआत 1921 में लाला लाजपत राय द्वारा की गई थी| इस सोसाइटी का उद्देश्य उन युवाओं को
प्रशिक्षण देने का था| जिन्होंने अपना सारा
जीवन देश की आजादी के संघर्ष में लगा दिया था| सन 1927
में लाल बहादुर शास्त्री
जी का विवाह कुमारी ललिता देवी के साथ हुआ विवाह संस्कार काफी साधारण तरीके
से किया गया था|
1930 में गांधी जी ने “सविनय अवज्ञा आंदोलन” का आवाहन किया और लाल बहादुर शास्त्री जी भी
उसमें शामिल हुए |इस आंदोलन में जुड़ने का
मकसद था उन लोगों को जागरूक करना जो अपना भू राजस्व अंग्रेजों को देते थे| इस आंदोलन के तहत अंग्रेजों ने लाल बहादुर
शास्त्री जी को गिरफ्तार कर लिया और ढाई साल के लिए कारावास में डाल दिया गया |जेल में वे पश्चिमी देशों के दार्शनिकों
क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों के संपर्क में आए|
एक बार जेल में रहते हुए
शास्त्री जी की बड़ी बेटी काफी गंभीर रूप से बीमार पड़ गई| इसकी खबर सुनते ही अधिकारियों ने शास्त्री जी
को कुछ समय के लिए रिहा करने का प्रस्ताव दिया| लेकिन रिहा करने के बदले उन्होंने एक शर्त रखी कि वह इस
दौरान किसी भी आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे और यह उनको लिखित में देना था |शास्त्री जी किसी आंदोलन में भाग लेने के बारे
में सोच भी नहीं रहे थे लेकिन फिर भी वह इस बात को लिखकर नहीं दे रहे थे |उन्हें ऐसा लगता था कि लिख कर देना उनके
आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना था|
1939 में दूसरे विश्व युद्ध
शुरु होने के बाद सन 1940 में कांग्रेस ने आजादी की
मांग करने के लिए एक जन आंदोलन प्रारंभ किया| लाल बहादुर शास्त्री जी को जन आंदोलन के दौरान दोबारा
गिरफ्तार कर लिया गया और 1 साल बाद रिहा किया गया|
8 अगस्त 1942 को गांधी जी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” का आवाहन किया शास्त्री
जी ने भारत छोड़ो आंदोलन में एक अहम भूमिका निभाई और इसमें हिस्सा लिया| इसी दौरान वह भूमिगत हो गए थे| लेकिन इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें ढूंढ कर
गिरफ्तार कर लिया था फिर 1945
में दूसरे बड़े नेताओं के
साथ शास्त्री जी को भी रिहा कर दिया गया था|
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शास्त्री जी का
प्रधानमंत्री बनने तक का सफर :- शास्त्री जी ने सन 1946 में हुए प्रांतीय चुनाव
में अपनी कड़ी मेहनत के द्वारा पंडित गोविंद बल्लभ पंत को बहुत ही ज्यादा प्रभावित
किया | इस समय लाल बहादुर
शास्त्री की प्रशासनिक क्षमता और संगठन कौशल कला बाहर निकल कर आया | जब गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को संसदीय सचिव के रूप में
नियुक्त किया|
1947 में गोविंद बल्लभ पंत जब
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब वह तब शास्त्री जी पंत मंत्रिमंडल में पुलिस
एवं परिवहन मंत्री बने थे| भारत के आजाद होने के बाद
आयोजित आम चुनाव में तब लाल बहादुर शास्त्री जी को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त
किया गया था| उस समय कांग्रेस पार्टी
भारी बहुमत से चुनाव जीती और अपनी सरकार बनाई|
सन 1952 में जवाहरलाल नेहरू ने लाल बहादुर शास्त्री जी को केंद्रीय
मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया था| तृतीय श्रेणी के डिब्बों में यात्रियों को और
अधिक सुविधाएं व लाभ देने का श्रेय लाल बहादुर शास्त्री जी को जाता है जो कि कभी
भुलाया नहीं जा सकता|
1956 में एक बड़ी रेल दुर्घटना
हुई जिसकी जिम्मेदारी लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने ऊपर ले कर रेल मंत्री से
इस्तीफा दे दिया| जवाहरलाल नेहरू ने
उन्हें काफी समझाने की कोशिश करी लेकिन वह अपनी बात पर अडिग रहे शास्त्री जी ने
अपने कार्यों से नैतिकता और सरलता की छाप छोड़ी और वह लोगों के बीच में सादा जीवन
और अपनी नैतिकता के लिए काफी प्रसिद्ध हुए| अगले आम चुनावों में जब कांग्रेस सत्ता में आई लाल बहादुर
शास्त्री जी को परिवहन एवं संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पद
पर नियुक्त किया गया था|
सन 1961 में गोविंद बल्लभ पंत के देहांत के बाद शास्त्री जी को गृह
मंत्री बनाया गया तथा सन 1962
में भारत चीन युद्ध के
दौरान शास्त्री जी ने आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में काफी अहम रोल निभाया| सन 1964 में जवाहरलाल नेहरू के
मरणोपरांत लाल बहादुर शास्त्री जी को सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री चुना गया था|
यह एक ऐसा समय था जब भारत
बहुत ही मुश्किल समय से गुजर रहा था| भारत में अनाज की काफी कमी थी और ऊपर से सुरक्षा के मोर्चे
पर पाकिस्तान भारत की नाक में दम कर रहा था| भारत की आंतरिक सुरक्षा एवं अपने सैन्य बल का हौसला बढ़ाने
के लिए शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का नारा भारत को दिया तथा अपनी
सूझबूझ एवं समझ से 1965
में हुए हमले का भारत ने
पाकिस्तान को जवाब दिया और उन्हें खदेड़ कर रख दिया|
1966 में भारत और पाकिस्तान के
बीच शांति समझौता के लिए शास्त्री जी ताशकंद के लिए रवाना हुए तथा वहां पर
पाकिस्तान के अयूब खान के साथ शांति समझौता हुआ और पाकिस्तान को कब्जे वाली सारी
जमीन लौटा दी| लेकिन ताशकंद से लौटते
वक्त लाल बहादुर शास्त्री की 1 रहस्यमई मौत हो गई लेकिन
लोगों का कहना है कि उनकी मौत दिल के दौरा पड़ने से हुई थी लेकिन कई लोगों का यह
भी कहना है कि यह एक सोची-समझी साजिश थी|